मैथिली किस्सा: हमरा गाम मे एगो पंडीजी छलाह, ओ एतेक मजाकिया छला जुनि पुछू। मजाक करै मे दूर-दूर तक हुनक चर्चा होइ छन्हि। सच पुछू तँ मजाक करै मे ओ किनको नञि छोड़ैत छथिन्ह।
एक दिनक बात छल हुनक अर्धांग्नी (पंडीतैन) हुनका कहलखिन अहाँ सभसँ मजाक करै छी, एत धरि जे मजाकक मामला मे दूर-दूर तक अहँक चर्चा होइत अछि। मुदा अहाँ हमरासँ कहियो मजाक नञि केलहुँ। पंडीजी बजलाह- देखू सुनेना के माय, ई बात सत्य अछि जे हम सभसँ मजाक करै छी, एकर मतलब ई थोड़े ने की हम अहूँसँ मजाक करी?
ताहि पर पंडीतैन कहलखिन- से नञि हएत, एक दिन अहाँ हमरासँ मजाक क ई देखाबू ताकि हमहूँ तँ देखी जे अहाँ कोना मजाक करैत छी? पंडीजी हारि क् बजलाह- ठीक अछि, जहिया हमरा मौका भेटत हम अहूँसँ मजाक करब।
किछु दिनक बाद पंडीजी अपन सासूर पहुँचलाह, सासुर मे हुनकर खूब मोनभर आदर भेलन्हि, भोजन-भातक बाद ओ जाय लेल निकलै छलाह ताबे मे हुनकर छोटका सार सुनील बाबु हुनका आग्रह क कए कनि देर बैसे लेल कहलखिन।
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सुनील बाबु कहलखिन- झाजी बहुत दिनक बाद आयल छलहुँ, किछु गाम-घरक समाचार सुनाबू। पंडीजी मूह बनबैत बजलाह की कही सुनील बाबु किछ दिनसँ हम बहुत परेशान छी।
सुनील बाबु पुछलखिन- झाजी की बात अछि अहाँ बहुत दुखी लागैत छलहुँ, कनि खोइल के कहू अहाँ केँ कोन परेसानी अछि? हम अपनेक कुनू काज आबी तेँ हमरा ख़ुशी हएत।
पंडीजी कहलाह- सुनील बाबु बात ई अछि जे घरमे आधा राति केँ एक प्रेत सुन्दर युवतिक रूप मे अर्धनग्न अवस्था मे दलान पर आबैत छलीह आ जतेह अनार, लताम, नेबो सभ गाछ में रहैत अछि सभ टा तोड़ि क चलि जाइत छलीह। हम रोज ओकरा देखैत छलहुँ मुदा हिम्मत नञि होइत अछि जे ओकरा रोकी। आब अहीं कहू जे हमरा ई अनार, लताम आ नेबोक गाछ लगेनेसँ कोन फायदा? परेसान भ क आब सोचने छी जे सभ टा गाछ केँ काटि देब, जखन फल खेबे नञि करब तँ गाछ राखिये क कोन फायदा?
पंडीजी क बात सुनि क सुनील बाबु हँसैत-हँसैत बजलाह- बस एतबे टा बात सँ अहाँ परेसान छी? अहाँ चिंता जुनि करू। काल्हि हम आबय रहल छी, काल्हि राति हम ओ प्रेत केँ देखब। आब अहाँ जाऊ, हम काल्हि आबए छी।
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पंडीजी कहलखिन- ठीक अछि, कनि सांझे केँ आयब हम अहाँक बहिन केँ कहि देबैन अहाँ ले भोजन-भात तैयार रखतीह। ई कहि केँ पंडीजी सासूर स बिदा भेलाह। आ घर पहुँचते चौकी पर चारु-चित पड़ि रहलाह।
पंडीतैन हुनका चौकी पर चारु-चित परल देख कए दौगल अएलीह आ पुछलखिन- नाथ की भेल अहाँ केँ? अहाँ किछु परेसान लगै छी।
पंडीतैन केँ परेसान देखि क पंडीजी उदास मने बजलाह- हाँ पंडीतैन, बाते किछु एहेन अछि जै सँ हम परेसान छी।
पंडीतैन पुछलखिन- देखू हमरासँ किछ छुपबई के प्रयास नञि करू, अहाँक ई हालत हमरासँ देखल नञि जएत, जल्दी कहू की बात छै?
पंडीजी कहलाह- की कही पंडीतैन आय हम अहाँक नैहर गेल छलहुँ, अबैत घरी रस्ता मे एगो ज्योतिष महाराज जबरदस्ती हमर हाथ देखलन्हि।
पंडीतैन बिचे में टोकैत बाजलैथ- की भेल सेतँ कहू? पंडीजी कहलाह- भेल ई जे हुनकर कहब छनि, हम आब खाली 5 दिनक मेहमान छी।
ई बात सुनिते पंडीतैन जोर-जोर सँ छाती पिटैत कानए लगलीह। हे कालि मैया हम ई की सुनय छी, नाथ अहाँ चिंता नञि करू हम कुनू निक ज्योतिष सँ अहाँ केँ देखाएब। यदि कुनू कलमुहीक छाया अहाँ पर अछि त ज्योतिष महाराज कुनू ने कुनू उपाय ओकर निकालताह।
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पंडीजी पंडीतैन के चुप करैत कहलखिन- भाग्यवान उपाय तँ इहो ज्योतिष महाराज बतेल्न्हि लेकिन…। पंडीतैन- की उपाय बतेलक से कहू ?
पंडीजी कहलखिन- किछ नञि, हुनक कहब छन्हि जे आमावस्याक रातिमे यदि कुनू सुहागिन नारी अर्धनग्न अवस्था मे आधा राति केँ यदि कुनू नेबोक गाछसँ नेबो तोड़ि केँ आनथि आ सूर्योदय सँ पहिने यदि हमरा ओकर सरबत पीएय लेल देल जाय त ई बिघ्न दूर कएल जा सकैत अछि।
ई बात सुनि पंडीतैन कहलखिन- नाथ तखन अहाँ चिंता किए करै छी, काल्हि अमावस्या छी आ अपने दलान पर नेबोक गाछ अछि, काल्हि हम अपने ई काज करब अहाँ चिंता नञि करू। राति भ् गेल, चलू सुइत रहु, काल्हि सभ ठीक भ जएत।
दुनु प्राणी सुतए लेल चली गेलाह मुदा पंडीतैन केँ भरि राति निंद नञि भेलनि। ओ भोरक इंतजार करए लगलीह। भोर भेल आब ओ रातिक इंतजार करए लागलीह। ताबे धरि सांझ के सुनील बाबु
पहुँचलाह।
पंडीतैन कहलखिन- भैया आय अहाँकेँ बहिन कोना मोन पड़ल, कहीं रस्ता त नञि बिसरि गेलहुँ? सुनील बाबु कहलखिन- बहिन आय दफ्तरक छूटी छलए तँ सोचलहुँ जे अपन गुडियांक हाल-समाचार ल आबी। बाद मे बहुत देर तक हाल समाचारक बाद सभ भोजन केलक।
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भोजनक बाद सुनील बाबु सुतए लेल दलान पर चलि गेलाह। एम्हर पंडीजी-पंडीतैन सेहो सुतए लेल चलि गेलाह। लेकिन किनको निंद नञि आबैत छन्हि। पंडीजी अपन मजाकक बारे मे सोच रहल छलाह तँ पंडीतैन अपन जीवन साथीक जीवनक लेल। सभसँ हटि क सुनील बाबु बहुत खुश छलाह कियेकी हुनकर सोचब छन्हि जे ई अनार, लताम, नेबो तोरब कुनू प्रेतक काज नञि ई कुनू परोसिनक काज थीक। आय ओ मने मन सोचलथि जे कियो भी होए हम ओकरा नञि छोड़ब, किये की ओ हमर झाजीक जिनाय हराम कए देने अछि। ओ एखने सँ नेबोक जड़िमे जा कए बैसि गेलाह।
देखते-देखते राति सभ केँ अपन कोरमे ल लेलक। पंडीतैन धरफड़ाएले उठलीह, अपन कपड़ा उतारलन्हि, माथ झुका कालि मैया केँ प्रणाम क कए विनती केलन्हि जे हे मैया हमर पतिक रक्षा करिहैथ। आ ओ चलि देल्न्हि नेबो तोड़ए लेल।
पंडीतैन जहिना नेबो गाछ तर पहुँचलीह सुनील बाबु भरि-पाँज हुनका पकड़ि लेलखिन आ मूह दबेने दलान दिस चलि देलन्हि। ताबे धरी पंडीजी हाथ मे लालटेन लेने दौगल अएलाह। आ पंडीजी बाजलाह- सुनील बाबु, सुनील बाबु रुकू, रुकू, ई कियो आर नञि अहींक बहिन छलीह।
ई सुनिते सुनील बाबु भोर होए के इन्तजारो नञि केलन्हि, तखने भागलाह अपन गामक दिस। एम्हर पंडीतैन पंडीजी सँ लिपटि केँ कलपि-कलपि क कानए लगलीह आ कहलखिन- नाथ अहाँ हमरा संग एहेन मजाक किये केलहुँ।
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