मैथिली किस्सा : मिथिलामे माँ काली शक्तिक अवतार मानल जाइत छथि। गोनू झा हुनकहि उपासक छलाह। हुनक उपासना कयलाक बादहि ओ कोनो आन काज करैत छलाह। तेँ हुनका प्रत्येक काजमे सफलता भेटैत छलनि।
एक दिन गोनू झा निशचय कयलनि जे, जेना हो, माँ कालीक दर्शन कायल जाय। एहि लेल ओ निरन्तर हुनक आराधना करय लगलाह। मां काली प्रसन्न भेलथिन आ निशचय कयलनि जे साक्षात् दर्शन देबासँ पूर्व गोनू झाक साहसक परीक्षा लेल जाय।
गोनू झा के माँ कालीक मिलल आशीर्वाद
एक राति गोनू झा सूतल रहथि। निसभेर रातिमे माँ कालीक दर्शन देलथिन। हुनकर रूप विकराल छल। एक सय मुहँ रहनि मुदा हाथ दुइये टा। गोनू झा हुनकर ई रूप देखि के कनिको विचलित नहि भेलाह। ओ पहिने त हुनका प्रणाम कयलनि मुदा गोनू ठठाक हँसि पड़लाह।
माँ कालीककेँ विशवाश रहनि जे हुनकर ई भयंकर रूप देखि गोनू झा विचलित भ उठताह, मुदा हुनका हँसैत देखि पुछलथिन – “की, हमर ई रूप देखि अहाँकेँ डर नै भेल?”
गोनू झा कहलथिन – माँ बाघसँ डर होइत छैक मुदा ओकर बच्चा ओकरासँ कनेको नहि डराइत अछि, अपितु ओकरा देह पर कुदैत – फनैत रहैत अछि। तखन अहीं कहू जे अहाँ सँ अहाँक नेनाकेँ डर लगतै?”
माँ काली कहलथिन – “गोनू अहाँक मन्तव्य एकदम सत्य अछि। मुदा ई त कहू जे हमरा देखि अहाँकेँ हँसि कियक लागि गेल?”
गोनू झाक उत्तर भेलनि – “हे माँ हमरा मात्र एक मुहँ आ एक नाक अछि, मुदा दु टा हाथ रहितो सर्दी भेला पर नाक पोछैत-पोछैत परेसान रहैत छी।”
माँ काली कहलथिन – “अहाँ कह की चाहैत छी?”
गोनू झा आगू कहलथिन– “अहाँकेँ एक सय मूँह आ एक सय नाक अछि, मुदा हाथ दुइये टा। हमरा चिन्ता भ गेल जे सर्दी भेला पर अहाँ अपन नाक सभ कोना पोछैत होयब। आ यैह कल्पना करैत हमरा हँसी लागि गेल।”
गोनू झाक ई परिहास सुनि माँ काली सेहो हँसि पड़लीह आ बजलीह – “गोनू’ अहाँ बुधियार भक्त छी। हमरो अहाँ नहि छोड़लहूँ। जाउ हमर आशीर्वाद अछि जे आहाँकेँ धूर्ततामे क्यो नहि हरा सकँए।”
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